छलक जाए ना इस दिल से कोई ग़म ,
के अक्सर यूँही हंस लिया करता हूँ ;
टूट जाता था जिनपर आँसुओं का बाँध ,
उन जज़्बात को कस लिया करता हूँ ;
के ख़ौफ़ नहीं अब और किसी का ,
बस फिर से मरने से डरता हूँ…
फिर से मरने से डरता हूँ ||
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इन लम्हों की बेशर्मी पे हैरां हूँ,
के चलती रही साँसें…खुद ज़िंदगी को खोकर ;
चुकाई हर हँसी की कीमत,
घंटों अंधेरे में रोकर ;
जाने ये वक़्त कैसे हर बार मात दे जाता है,
के खुद भी जलकर देख लिया…पर अंधेरा लौट ही आता है ;
पर अंधेरा लौट ही आता है ||
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