ऊँ शांति: (2)

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आध्यात्म की गहराइयों में भटकता बावरा मन…

मुकम्मल  जहाँ  की  तलाश  में,

फिरते  रहे  मारे-मारे ;

कैसे  मिले…जो  खोया  ही  नहीं,

हर  पल  पास  है  हमारे ; 

बस  आँखें  बंद  करने  की  देरी  है,

और  जी  उठेंगे  दिलकश  नज़ारे ;

के  लड़खड़ाते  ये  कदम  अपनी  राह  ढूंड  ही  लेंगे,

कभी  यादों  की  भीड़  में…कभी  तन्हाई  के  सहारे ||

ψ ψ ψ

ख़्वाहिश  भर  से  अंजाम  मिला  नहीं  करते,

के  हर  ख़्वाब  को  परवान  चढ़ाना  पड़ता  है ;

अंधेरे  को  कोसकर  किसने  क्या  पाया  है,

के  अपना  दीपक  ख़ुद  ही  जलाना  पड़ता  है ||

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ऊँ शांति: शांति:

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28 thoughts on “ऊँ शांति: (2)

      1. लोग मरीज बन कर खुश है, अजीब जमाना है
        यार तूँ डॉक्टर है या दीवाना है ।

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