दीपावली :#poem

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It is that time of the year again and this little one from my archive still holds true.

दीपावली के शुभ अवसर पर…


होकर  विजयी  प्रभु  राम  हैं  लौटे,

के  दीवाली  का  त्यौहार  यहाँ, 

आतिशबाज़ी  पर   है  रोक  लगी ,

पर  धुएँ  के   हैं  गुबार  यहाँ, 

खील-खिलौने  तो  याद  नहीं,

होड़  में  है  चरखी-अनार  यहाँ,

फ़ेसबुक  दुआओं  से  सुसज्जित  है,

पर  परिजनों  का  है  तिरस्कार  यहाँ,

हर  द्वारे  दीपक  जगमग  हैं,

पर  सड़कों  पर  मरता  कुम्हार  यहाँ,

लक्ष्मी  जी  का  पूजन  है,

पर  दहेज  प्रथा  की  मार  यहाँ, 

के  देसी  घी  के  लड्डू  हैं,

पर  खाकर  इन्हें  बीमार  यहाँ,

पकवानों  से  महकती  फ़िज़ा तो है ,

पर  भूखों  की   हैं  कतार  यहाँ,

ख़ूब  सजे  हैं  चौक-चौबारे,

हर  जेब  में  लेकिन  है उधार  यहाँ, 

दो  नावों  पर  सवार  हैं  सब,

और  जाने  गुम  पतवार  कहाँ,

के  हम  हैं, तुम  हो  और  दीपावली,

हर  गम  में  खुशियों  की  भरमार यहाँ,

मुबारक  हो  सबको  त्योहार  दीवाली,

के  इसके  जैसा  कोई  त्योहार  कहाँ ?

खुशियों  की  ऐसी  फुहार  कहाँ?

खुशियों  की  ऐसी  फुहार  कहाँ?…

***

Wish you all a very happy and vibrant Deepawali 🙂

11 thoughts on “दीपावली :#poem

  1. Pingback: What can poetry do? – doc2poet

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