Story of every women who rises from the ashes of her own sufferings as a beacon of light and positivity.
मैं नारी हूँ, मैं अबला हूँ,
संघर्ष ही मेरा नसीब है;
मैं ही हूँ, बस मेरा सहारा,
दहेज, समाज; बस रक़ीब हैं;
कुचलने में मेरे अरमान,
इन बेदर्दो को कोई हर्ज नहीं;
हाथों की लकीरें, भी हैं नाकाम,
मेरे हिस्से बस हिज्र सही;
जाने क्यूँ? किसने? ये फर्क किया?
उनको सब खुशियाँ, हमें नर्क दिया !
शायद उसको भी, है ये पता,
के मुझमें ही, गौरी-काली है ,
कब तक कर पाएंगे, मेरा दमन ?
ये रुत ही बदलने वाली है,
रुत ही बदलने वाली है…||
***
-©doc2poet
Sunder rachna
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Shukriya Pratima😊
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waah bahut khoob behtareen rachnatmak abhivyakti
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शुक्रिया पुष्पेन्द्र 😊
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अब कहां रह गयी नारी अबला
पुरूषों का बजा रखा है, बैंड बाजा और तबला ।
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😂😂😂 कुछ हद तक…
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Beautiful poem
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Thanks Rupam😊👍
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नमस्कार , बहुत अच्छा लगा आपके ब्लाग पर आकर । मैं पिछले 6 साल से लिख रहा हू । पहले भी कई ब्लाग बनाये और फिर बीच मे ब्लाग पर लिखना कम करके अपने लैपटाप पर ही लिखने लगा हू । अब फिर से ब्लाग पर सक्रिय होने जा रहा हू । आपका सहयोग रहेगा तो वापसी अच्छी कर पाऊंगा ।
मेरे ब्लाग पर आईयेगा,मैं वादा करता हू आपको निराश हो कर नही लौटना पडेगा ।
ब्लाग की लिंक है :- http://www.chiragkikalam.in/
धन्यवाद ।
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meri shubhkamnayein…
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