बहुत लोग शायद जानते न हों पर दिल्ली शहर हम सबकी सोच से पुराना है | अलग-अलग समय में इसे ७ बार बनाया गया है और उन सबके अवशेष आज भी हमारे बीच मौजूद हैं |
गुप्ता राजवंश द्वारा ४०० इ.पू. में क़ुतुब मीनार में लगाया गया मिश्रित धातु का खंबा आज भी ज़ंग से बचा हुआ है | तुघ्लक़ राजवंश का तुघ्लक़ाबाद का क़िला, इब्राहिम लोदी का लोदी गार्डेन, शेर शाह सूरी का पुराना किला, मुगलों का लाल किला और जामा मस्जिद और लुटियन दिल्ली से आज की हमारी नयी दिल्ली सभी अपने आप में एक मिसाल हैं |
के जिनके क़लम-ओ-तलवार ने रचा इतिहास था, बे-आबरू हुए वो बिखरे पन्नों से झाँकते हैं,
अब तेरी मेरी क्या बिसात ए ग़ालिब, के मुघलिया तख़्त भी यहाँ धूल फाँकते हैं ||
♥ ♥ ♥ doc2poet
सैंकड़ों क़िस्से दफ़्न हैं इस मिट्टी में, ज़रा कुरेदूँ तो अश्क नज़र आते हैं,
वो शान-ओ-शौक़त, वो राज-घराने सब धूमिल हैं, सिंघासन पर बैठने वाले, अब फक़त मुख्तसर बातें हैं ||
♥ ♥ ♥ doc2poet
अगर आपको मेरी कविताएँ पसन्द आयें तो मेरी पुस्तक “मन-मन्थन : एक काव्य संग्रह” ज़रूर पढ़ें| मुझे आपके प्यार का इन्तेज़ार रहेगा |