लंबे समय से कवि सामाजिक मुद्दों को अपनी कविताओं में उजागर करते रहे हैं | आज समय कुछ और है पर कविताओं में गंभीर मुद्दों को आज भी देखा जा सकता है | भ्रूण हत्या नारी सशक्तिकरण में लगे सामाजिक कोढ़ का वह कीड़ा है जो समय के साथ कमज़ोर होने की बजाय और भी प्रबल होता रहा है| नारी शक्ति पर मैनें कई अंश लिखे हैं पर ये पंक्तियाँ आपको सोचने पर ज़रूर मजबूर कर देंगी | आपने भी महसूस तो किया ही होगा कि हम श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर कान्हा के साथ राधा को भी पूजते तो हैं, पर क्या हम उसे सुरक्षित जीवन दे पायें हैं…
उत्सव हर ओर, है जगमग मन मन्दिर,
के इन गलियों की आज भिन्न सी कुछ आभा है,
गूंजेगा पलना आज स्वयँ वासुदेव की किलकरी से,
पर इस मोर पॅंख में तेज, आज कुछ कम है, कुछ आधा है,
के बुझा दिया जिस कोख का दिया, समाज के इन रखवालों ने,
शायद उसी कोख में राधा है, उसी कोख में राधा है ||
♥ ♥ ♥ -doc2poet
अगर आपको मेरी कविता पसन्द आयें तो मेरी पुस्तक “मन-मन्थन : एक काव्य संग्रह” ज़रूर पढ़ें| मुझे आपके प्यार का इन्तेज़ार रहेगा |
