Holi is a festival synonymous with frolic and fun. There are more memories of my childhood Holis than I care to remember. Each Holi seemed like a lifetime of jollification. The colors, the balloons, the sweets and finger licking homemade snacks and what not. Holi was more flamboyant and lively those days. Not caring about how I looked, how’s my hairs and my clothes made it even more fun. But things have changed now…I don’t know why or even how…may be it is the price we pay for growing up. Those days may or may not come back but I would certainly love to relive them. Here is a poem about all that I miss about Holis back then.
वो बचपन की होली…
याद आते हैं वो दिन, वो लम्हे वो पलछिन,
वो कच्ची उमर, वो मस्ती बेफ़िकर,
वो माँ का प्यार, वो हर दिन त्योहार,
के याद आता है बचपन, वो यादें मन-मंथन;
याद आती है होली, वो मस्तानों की टोली,
वो हर्ष वो उल्लास, वो हफ़्तो चलता रास,
वो शरारत वो सताना, कभी हँसना कभी हँसाना,
के याद आता है होलिका-दहन, वो करना दुलेंडी की तैयारी गहन;
याद आती है वो पिचकारी, वो टब मे गिरने की बारी,
वो पानी वो गुब्बारे, वो छीटें वो फुहारें,
वो खेल वो निशाना, वो बेमतलब ही भिगाना,
के याद आते हैं वो रंग, करना वो मस्ती यारों के संग;
याद आती है रंगों की बारिश, वो छोड़ देने की गुज़ारिश,
वो कीचड़ वो गुलाल, वो शिकायत और मम्मी की ढाल,
वो कई-कई बार नहाना, और फिर से रंग लगाना,
के याद आता है वो ठिठुरना, वो रंगीन पानी में उड़ना;
याद आती है वो गुजिया, वो पकौड़े वो भजिया,
वो मीठे से रसगुल्ले, वो दही में डूबे भल्ले,
वो खाना वो खिलाना, वो मनचाही चीज़ दिलाना,
के याद आते हैं वो त्योहार, वो दोस्त वो रिश्तेदार;
याद आते हैं वो पक्के रंग, वो बच निकलने की जंग,
वो गली-गली में पहरे, वो यारों के बेगाने से चेहरे,
वो रंगी हुई दीवारें, वो बचे हुए गुब्बारे,
के याद आती है बचपन की होली, वो मस्ती वो हमजोली;
के अब कहाँ रंगों मे वो मिठास है, त्योहार वही पर अलग लिबास है,
लगाते हैं रंगों का टीका भर, पर दिलों को रंग नही पाते हैं,
के रौनक बाज़ारों में कुछ खास है, पर समय ही किसके पास है,
होली को अब पर्व नहीं छुट्टी बताते हैं, जाने क्यूँ इस दिन को बंद दीवारों में मनाते हैं;
के याद आती है बचपन की वो होली, जिसे करते हैं याद पर फिर भूल जाते हैं,
के बरसते हैं जब यादों के ये बादल, तभी तो जीवन में फूल आते हैं,
और हर साँस को महकाते हैं… हर साँस को महकाते हैं…
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I’m pledging to #KhulKeKheloHoli this year by sharing my Holi memories at BlogAdda in association with Parachute Advanced.
We should not be sad because they are not here and we can’t see them…but we should smile because they lived. They are watching us and we can make them happy by being someone they would want us to be…
नम आँखों से छलकते जज़्बात…
उन्हें भूल पाना अब मुमकिन नहीं ,
के ये कोमल एहसास ही, साँसों का सहारा बन गया ;
उनकी छाया तले ही सीखा जीना हमने,
और उनका अक्स ही, किस्मत का सितारा बन गया ;
साहिलों से नाता टूटे ज़माना हो चला,
के उफनते इस सागर में, ये तिनका ही किनारा बन गया ;
पर दूर होकर भी वो इस दिल से दूर नहीं,
के बुझी कहीं एक लौ, तो कहीं शरारा बन गया ;
रौशन है ये रूह बस उन्हीं के नूर से,
के बिखरा एक सपनों का महल, और यादों से दोबारा बन गया ;