PS: This one is the closest to my heart. If you have ever liked any of my poem, you will love this one. And if you are here for the first time, the archive is on the right…
अपने आँसुओं को जग की आँखों से छुपाकर पी जाना मैने बहुत पहले ही सीख लिया था | लेकिन कुछ बातें कभी नहीं छुपाई जा सकती | मेरे जीवन का सबसे दुखद लम्हा वह था जब उनका साया मेरे सर से रूठ गया | आज भी रह-रह कर वही पल अक्सर मेरी कविताओं में लौट आता है…
के जितना था मुझसे दुलार,
करती थी जितना मुझसे प्यार;
मुझे एक बार और बाहों में भरने को,
वो दरिया-ए-आग मे भी उतरती;
होता गर बस मे उसके,
तो चन्द साँसें और ज़रूर भरती;
अपने लिए न सही,
मेरे लिए तो ज़रूर करती |
वो रूठना, वो मनाना ,
वो डांट कर फिर प्यार जताना;
ऐसे पल-दो-और-पलों के लिए,
वो कुछ भी कर गुज़रती;
होता गर बस मे उसके,
तो स्वयं काल के प्राण भी हरती;
अपने लिए न सही,
मेरे लिए तो ज़रूर करती|
पर भाग्य की थी कुछ और ही रज़ा,
मेरे रंगों मे जैसे कालिख ही भर दी;
के ग़म तो उसने थोक ही दिए,
पर ममता केवल फुटकर दी;
होता गर बस मे उसके,
तो समय की रेत से द्वंद भी वो करती;
अपने लिए न सही,
मेरे लिए तो ज़रूर करती,
मेरे लिए तो ज़रूर करती||
♥ ♥ ♥ doc2poet
अगर आपको मेरी कविताएँ पसन्द आयें तो मेरी पुस्तक “मन-मन्थन : एक काव्य संग्रह” ज़रूर पढ़ें| मुझे आपके प्यार का इन्तेज़ार रहेगा |
