Story of every women who rises from the ashes of her own sufferings as a beacon of light and positivity.
मैं नारी हूँ, मैं अबला हूँ,
संघर्ष ही मेरा नसीब है;
मैं ही हूँ, बस मेरा सहारा,
दहेज, समाज; बस रक़ीब हैं;
कुचलने में मेरे अरमान,
इन बेदर्दो को कोई हर्ज नहीं;
हाथों की लकीरें, भी हैं नाकाम,
मेरे हिस्से बस हिज्र सही;
जाने क्यूँ? किसने? ये फर्क किया?
उनको सब खुशियाँ, हमें नर्क दिया !
शायद उसको भी, है ये पता,
के मुझमें ही, गौरी-काली है ,
कब तक कर पाएंगे, मेरा दमन ?
ये रुत ही बदलने वाली है,
रुत ही बदलने वाली है…||
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