यह वो समय था जब मैं लड़कपन के जोश में, बेबाक, बेफिक्र, मदमस्त हाथी की तरह चला जा रहा था | संतुष्ट जीवन की छाँव तले मेरे ह्रदय में बस एक ही आस थी | उन हसीन पलों में हर रंग थोड़ा और रंगीन लगता है, हर चेहरा आफरीन लगता है, इन हवाओं में एक नशा सा घुल जाता है और हर स्वाद तोड़ा और नमकीन लगता है |
इस दिल से उठती ख़ुश्बू के कुछ कतरे आपकी नज़र करता हूँ:
तकते थे राह उनकी,
इस कशमकश में यूँही ग़ज़ल बन गयी,
के दिल में उठा एक ख़याल,
और मुश्किल ख़ुद हल बन गयी ||
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वो कहते हैं तू ख़याल है बस,
इस पागल दिल का फ़ितूर है तू,
पर ज़िंदा हूँ मैं, खुद सुबूत है ये ,
के शायद कहीं ज़रूर है तू ||
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ढूँढता हूँ तुझे इन लकीरों में,
के तेरी ख़्वाहिश बेइंतहाँ है ,
बसा है तेरा अक्स इस दिल में,
पर जाने तू कहाँ है, जाने तू कहाँ है ||
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तेरे ख़यालों में ऐसा डूबा,
जैसे वर्षा घनघोर हुई,
जाने कब बीती रात ,
और जाने कब भोर हुई ||
♥ ♥ ♥ doc2poet
तेरा नाम लबों से गुज़रे अरसा हुआ,
पर मुस्कुराहट अभी बाकी है,
कैसे भुला दूँ तुझे ए हमनशीं,
के चाहत अभी बाकी है ||
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ख़्वाब में मिलीं कल नज़रें उनसे,
जाने दो पल में क्या कह गयीं,
हम अंदाज़-ए-बयाँ पर ही मर मिटे,
और बात अधूरी रह गयी ||
♥ ♥ ♥ doc2poet
ये तू नहीं, तेरी याद है बस,
अब कौन इस दिल को समझाए,
तेरी जुस्तजू ने शायर किया,
एक झलक जाने क्या कर जाए ||
♥ ♥ ♥ doc2poet
अगर आपको मेरी कविताएँ पसन्द आयें तो मेरी पुस्तक “मन-मन्थन : एक काव्य संग्रह” ज़रूर पढ़ें| मुझे आपके प्यार का इन्तेज़ार रहेगा |
