परम्परा : #Family

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माता पिता के चरणों में समर्पित कुछ पंक्तियाँ…


के अब ये सफ़र बीत जाने को है,  

के अब ये कारवाँ मंज़िल पाने को है;

के यूँ तो ये राह आसान न थी,  

पर छू लूँ आसमान,बस इसी होड़ में था;

लगने न पाया, पाँव में काँटा पर कोई,

क्यूँकी… मैं तो आपकी गोद में था;

सींचा न होता, गर  प्यार से इस जीवन को,  

सच्चे मोती की तरह, अगर सँवारा न होता;

होता न महरबान, भगवान भी यूँ मुझपर,  

गर इन  हाथों को, आपकी उंगली का सहारा न होता;

शाखों पर अपनी, फूल सा खिलाया इस जीवन को,

कैसे सम्भव;  ये मात्र एक बीज से होता;

गर शुरू करता, मैं भी  उसी शून्य से,

तो आज  मैं  ये नाचीज़ न होता;

कहते हैं बसा वो  कण-कण में है,  

पर मैने उसे बस आप ही में पाया है;

पाऊँ हर जन्म में बस आप ही की छाया, 

करे गर क़रम, वो जिसने हमें बनाया है;

के अब साथ मिलकर चलना है,

और आगे बढ़ते जाना है;

इस मशाल को बुलन्द कर,

अनन्त दीपों को जलाना है;

रहना है आपके आशीर्वाद की छाया में,

और इस परम्परा को निभाना है…

***

This post is a part of Write Over the Weekend, an initiative for Indian Bloggers by BlogAdda. This week’s WOW prompt is – ‘ It’s A Family Tradition’.

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14 thoughts on “परम्परा : #Family

  1. लगने न पाया कोई भी काँटा क्योंकि मैं तो आपके गोद में था ।। कितना सच है ये । आज भी माता पिता के पास हम कितने secured हम ही भूल जाते। हैं उनके जतन ..

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    1. सच में। मैंने ये कविता MBBS कर लेने पर अपने parents के लिए लिखी थी । I am lucky to have them. In fact we all are☺

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